Tuesday, December 25, 2012

क्रान्ति नही शान्ति....


कांग्रेस के खिलाफ़ लोगों में इतना आक्रोश है कि उसके कारण दिल्ली पुलिस के कॉन्स्टेबल सुभाष तोमर की मृत्यु हो गयी. समझ से परे है कि चुनाव के वक्त कांग्रेस के खिलाफ़ लोगों का ये आक्रोश और ज्वारभाटा कहाँ गायब हो जाता है??????
क्या जरुरत थी इस प्रदर्शन की??????? जबकि अन्नाजी और बाबा रामदेव के प्रदर्शन का रिजल्ट सबके सामने था कि किस तरह महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों पर हैवानियत का तांड़व किया गया था. देश में कानून व्यवस्था नाम की कोई चीज़ नही बची है. सरकार हर क्रान्ति को एक तानाशाह शासक की तरह कुचल कर रख देगी. इस राक्षसराज में जनता की पुकार सुनने वाला कोई नही है. ऐसे में क्या हमारे सामने सिर्फ़ एक ही विकल्प क्रान्ति ही बची थी?????
बिल्कुल नही. क्योकि हम लोकतंत्र में रहते हैं और लोकतंत्र में जान देकर या जान लेकर ही न्याय की प्राप्ति नही हो सकती. इसके लिये हमें बन्दूक उठाने की जरुरत नही है. लोकतंत्र का हथियार वोट है. हम सभी शान्तिप्रिय भारतवासियों को एक होकर खूब उत्साह से इसी वोट रुपी हथियार का प्रयोग बलात्कारियों, हिंसावादियों व उनके समर्थक नेताओं और जातिवादियों के विरुद्ध एक जुट होकर करना है. आलस्य को छोड़कर, हर काम को छोड़कर अपने वोट को जरुर ड़ालना है. जिससे ऐसे लोग चुनाव में हारकर सत्ता की ताकत से दूर रहें और वे लोग चुनाव जीतें, जो बिना किसी भेदभाव के सब पर बराबर न्याय करते हुये, देश में शान्ति स्थापित कर सकें.
सभी मित्रों से आग्रह है कि देश में शान्ति-व्यवस्था बनायें रखें और आज और अभी प्रण करें कि अपने वोट रुपी ताकत का इस्तेमाल अवश्य करेंगे और सत्ता परिवर्तन द्वारा ही इन आतातायी राक्षसों का सफ़ाया करेंगे. जय हिन्द.....

 

Tuesday, November 27, 2012

''हमारा संकल्प अखण्ड़ भारत''

आजकल हिन्दुवादी विचारधारा के लोगों की पोस्ट पर अखण्ड़ भारत का सपना देखने वालों की भरमार है. अगर मे सही हूँ तो अखण्ड़ भारत का सही अर्थ हुआ भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश का महासंघ. सही भी है, सपूत वही है जो अपनी माँ को टुकड़ों में बंटा हुआ ना देख सके. 
तीनों देशों का महासंघ बनेगा या नही ये बाद का विषय है लेकिन कल रात से मेरे दिमाग में ये चल रहा है कि अगर भारत खण्ड़
ित ना हुआ होता तो अखण्ड़ भारत कैसा रहा होता?????????
(आंकड़े लगभग में हैं कम ज्यादा भी हो सकते हैं)
20 करोड़ मुसलमान भारत के, 14 करोड़ पाकिस्तान के, 13 करोड़ मुस्लमान बांग्लादेश के, कुल मिलाकर 47 करोड़ और इस अखंड़ भारत की आबादी होती 127 करोड़. जिसमे मुसलमान होते 47 करोड़ अर्थात लगभग 37 प्रतिशत (100 में 37)
2 करोड़ ईसाई और 78 करोड़ हिन्दु. इस तरह चुनाव में 47 करोड़ मुसलमानों का मुकाबला 78 करोड़ हिन्दुओं से होता. मुसलमान तो हर हालत में एक होते और हिन्दुओं का वोट भी हर हालत में जाति के नाम पर बंटता.
इस तरह तो अगर अखण्ड़ भारत रहा होता तो इस देश में मुसलमानों का राज होता.
अब बहुत से बुद्धिजीवी लोग कह सकते हैं कि अगर सारे मुसलमान एक हो जाते तो हिन्दु भी एक हो जाते तब 47 करोड़ मुसलमान 78 करोड़ हिन्दुओं से कैसे जीतते????
उनको जवाब है कि इतिहास में एक हजार साल तक लात-जूता खाने के बाद भी हिन्दु मुसलमानों के विरुद्ध एक न होकर आपस में ही एक दूसरे को नीचा दिखाते रहे हैं तो आज तस्वीर कैसे बदल सकती थी?????
अब आते हैं मेन मुद्दे पर ''हमारा संकल्प अखण्ड़ भारत'' पर. मान लिजिये हमारा संकल्प अखण्ड़ भारत पूरा हो जाता है. तब क्या होगा????? तब क्या मुसलमानों को भगा दिया जायेगा????? अगर भगा दिया जायेगा तो कहाँ भगा दिया जायेगा और अगर नही भगाया गया तो इतिहास गवाह है कि मुसलमानों ने जहाँ पैर जमाया है काफ़िरों का सफ़ाया करना ही इनका मुख्य उद्देश्य रहा है.... जब, जब हिन्दुस्तान की सत्ता इनके हाथों मे आयी है निर्दोष और निहत्थे हिन्दुओं पर भूखे शेर की तरह टूट पड़े हैं. हिन्दुओं को बुरी तरह मारा-काटा और लूटा. उनकी बहन बेटियों को अपमानित किया.....
इतिहास को छोड़िये आज भी देखिये जहाँ मुठ्ठी भर मुसलमान इकठ्ठे हो जाये तो कैसे दहशतगर्दी फ़ैलती फ़ैलती है. और तब की सोचिये जब महासंघ के मुसलमान इकठ्ठे हो जाये?????????????

Friday, July 27, 2012

सच्चे प्रेम पर कुर्बान हुआ आलिक !!!!!!!!!!!!!!

औरंगजेब की बेटी जैबुन्निसा बहुत ही खूबसूरत थी. बुद्धि में भी वह बहुत तेज थी. औरंगजेब के सभी पहरेदारों में आलिकखान सर्वोत्तम कर्मचारी था. उसने अपनी बहादुरी व ताकत से औरंगजेब का दिल जीत लिया था. उसके इसी स्वभाव के कारण औरंगजेब की बेटी आलिकखान से एकतरफ़ा मोहब्बत का शिकार हो गई. आलिकखान के बार-बार महल में आने-जाने से उसने आलिकखान के सामने अपना प्रेम प्रकट कर दिया. आलिकखान भी जैबुन्निसा की मुहब्बत का शिकार हो चुका था वह राजकुमारी के प्रेम के लिये हर तरह की कुर्बानी करने के लिए तैयार था. जैबुन्निसा हर रोज आलिकखान से मिलने के लिए बैचेन रहती और आलिकखान कहीं न कहीं समय निकालकर उससे मिल लिया करता. कभी-कभी वह बड़े भोलेपन से आकिलखान से पूछती - क्या तुम्हे बादशाह से डर नहीं लगता?
तब आलिक निडरता से उतर देता - ''मैं तुम्हारी इस नजर से ज्यादा डरता हुं बादशाह का मुझे डर नहीं''
आलिक जैबुन्निसा के प्रेम में इतना दिवाना हो गया था कि केवल राजकुमारी को देखते रहने के लालच से वह बगीचे में मजदूर का भी काम करने लगा. वह जब भी राजकुमारी के पास से गुजरता तो कहता - ''तेरे लिए में जमीन की धूल बन गया''. इसके जबाव में जैब कहती कि - अगर तुम हवा भी बन जाओ तो भी मेरा एक भी बाल नहीं छू सकते।’
इसी तरह उनका प्यार परवान चढ़ता रहा. खुशी के ये दिन भी पलक झपकते बीत गये। अचानक एक दिन औरंगजेब ने जैबुन्निसा को दिल्ली चलने का फ़रमान जारी कर दिया.
मिलन की आखिरी रात समझ आलिक वेश बदलकर जैबुनिसा के कमरे में गया। वह उस रात का सबसे अच्छा उपयोग करना चाहता था। उसने पूरी रात अपनी महबूबा के साथ गुजारने का निश्चय कर लिया। वे दोनों खामोश बगीचे में घूमने लगे। उनका मौन उनके हृदय की बात कह रहा था। अन्त में दोनों घास पर बैठ गए। जैब अपने आंसुओ को न रोक सकी और रोने लगी। आलिक यह देख बेचैन हो उठा और जैब को अपनी बाहो में भरकर बोला, हमें मुसीबत का सामना बहादुरी से करना चाहिए। इस दुनिया में नहीं तो अगले जन्म में हम अवश्य ही मिलेंगे। जैबुन्निसा जानती थी कि आलिक का भविष्य अंधकारमय है। सच्चाई पता चलते ही औरगजैब उसे बडी सजा देने से नहीं चूकेगा. इसलिए उसने क्षमा याचना करते हुए कहा, प्यारे आलिक! तुम्हारी सारी मुसीबतों का कारण मैं हू। इसके लिए मैं माफ़ी चाहती हूं। आलिक ने समझाते हुए कहा - तुम्हे ऐसा नहीं सोचना चाहिए। इसमे किसी का दोष नहीं। दुनिया के लोग भले ही हमें एक-दूसरे से जुदा करने की कोशिश करें, लेकिन खुदा हमें अवश्य मिलाएगा। सबसे ज्यादा खुशी की वह रात पल-भर में बीत गई।
दिल्ली आने के बाद भी जैबुन्निसा और आलिकखान प्रेम पत्रों द्वारा अपने दिल का हाल एक दूसरे को बयां करते रहे. जब आलिक अपने को काबु में न रख सका तो उसने जैबुन्निसा के बगीचे में माली का काम ले लिया और इस प्रकार वह फिर अपनी महबूबा से मिल गया. बगीचे में दोनों घंटो तक साथ रहते और बातचीत करते.
एक रात जब आलिक माली के वेश में जैबुन्निसा के कमरे में था. औरंगजेब अपने नौकरों के साथ वहाँ पहुचाँ और उसने दरवाजे पर दस्तक दी. बाहर जाने का कोई रास्ता न देख आलिक पहले धबराया फिर उसने यहां वहां देखा तो उसे पानी गर्म करने का एक बडा देग खाली दिखा और वह उसमें छिप गया. फिर औरंगजेब ने जैब से पूछा इतनी रात तक तुम कैसे जाग रही हो. जैब ने जवाब दिया- अब्बाजान तबीयत ठीक न होने की वजह से मुझे नींद नहीं आ रही थी और इसलिए में बरामदे में बैठकर कुरान शरिफ की तिलावत कर रही थी. औरंगजेब फ़िर बोला- इस सूने कमरे में इतनी रात तक अकेले जागते रहना एक राजकुमारी को शोभा नहीं देता. औरंगजेब ने फिर कहा- जैब उस बडे देग में क्या हैं? इस पर जैबुन्निसा क्षण भर के लिए धबरा सी गई, लेकिन फिर उसने अपने को संभालते हुए जबाव दिया- कुछ नहीं अब्बाजान उसमें वजु कि लिए ठंडा पानी है. औरंगजेब ने व्यंग्य से हंसते हुए कहा इतनी ठंड में यदि तुम ठंडे पानी से वजु करोगी तो बीमार पड जाओगी उसे गर्म क्यों नहीं करवा लेतीं और फिर औरंगजेब के हुक्म के मुताबिक चूल्हा जलाया गया और पानी के देग को उपर रखा गया. किसी बहाने से जैबुन्निसा चूल्हे के पास गई और उसने धीरे से आलिक से कहा यदि तुम सचमुच मुझसे मोहब्बत करते हो तो मेरी इज्जत की खातिर जबान से उफ़्फ़ भी न करना. आलिक बोला - मैं तो तुम्हारा परवाना हूँ. तुम्हारे लिए मैं खुशी से जल जाऊंगा. उस परवरदिगार खुदाबंद से यही दुआ मांगता हूँ कि जिस चीज को हम दुनिया में हासिल न कर सके उसे खुदा हमें जन्नत में बख्शें. कुछ समय बाद औरंगजेब चला गया और आलिक देग के अन्दर जलकर मर गया.

Thursday, July 26, 2012

हकीकत ऐतिहासिक हिन्दु-मुस्लिम राखी भाई-बहनों की....

''रक्षाबन्धन'' मनहूस सेकुलर सुअरों को धर्मनिरपेक्षता का नागाड़ा बजाने का फ़ेवरेट त्यौहार. अब मनहूस सेकुलर लोग, लोगों को बहकाने के लिये रानी कर्णवती और दिल्ली के बादशाह हुमायूँ को राखी भेजने का किस्सा नमक मिर्च लगाकर सुनायेंगे. तो उससे पहले हम आपको इस कहानी की वास्तविकता बताते हैं-
हुआ यह था कि मालवा और गुजरात में राज्य कर रहा बहादुरशाह, दिल्ली के बादशाह हुमायूँ का जानी दुश्मन था. क्योंकि बहादुरशाह ने हुमायूँ के जानी दुश्मनों को अपने राज्य में शरण दे रखी थी. जिनमे प्रमुख थे इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खाँ, हुमायूँ की सौलेली बहन मासूमा सुल्तान के पति मोहम्मद जमाँ मिर्जा और हुमायूँ के खून का प्यासा बाबर का बहनोई मीर मोहम्मद मेंहदी ख्वाजा. बहादुरशाह ने यह सारे के सारे हुमायूँ के दुश्मन अपने पास बैठा रखे थे. इसलिये बहादुरशाह, हुमायूँ का नम्बर एक का दुश्मन था. जिससे हुमायूँ की जान और राज के जाने का खतरा था. इसलिये हुमायूँ बहादुरशाह को समाप्त करना चाहता था. जिसके लिये मौके की तलाश में था. इसी बीच उसे मौका मिल गया. जब बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर हमला किया और चित्तौड़ के किले को घेर लिया. रानी कर्णवती ने हुमायूँ को राखी भेजकर सहायता करने की गुहार लगाई. हुमायूँ ने जो पहले से बहादुरशाह के लिये घात लगाये था, मौका अच्छा समझा कि बहादुरशाह राजपूतों से उलझा है. ऐसे में अचानक हमला कर दो और दुश्मन को खत्म कर दो. इसी इरादे से हुमायूँ चला, न कि कर्णवती की रक्षा के लिये. यही कारण था कि हुमायूँ चल तो दिया था, लेकिन रानी कर्णवती की राखी की लाज बचाने के स्थान पर वह रास्ते में डेरा ड़ालकर बैठ गया. चित्तौड़ के राणा ने सन्देश पर सन्देश भेजा, लेकिन हुमायूँ टस से मस नही हुआ, मौजमस्ती मनाता रहा क्योंकि हुमायूँ क्या जाने राखी को. उसे तो मतलब था केवल अपने दुश्मन बहादुरशाह से. बहादुरशाह ने रानी कर्णवती के चित्तौड़ किले को जीतकर, उसे जी भर कर लूटा. रानी कर्णवती की राखी की लाज मुसलमान घुड़सवारों की टापों के नीचे कुचल गयी. बाद में हुमायूँ ने बहादुरशाह का गुजरात तक पीछा किया.
एक दूसरी राखी भोपाल की रानी कमलावती ने दोस्त मोहम्मद को बाँधी थी कि वह उसकी राखी की लाज रखे और उसके पति के हत्यारे बाड़ी बरेली के राजा का वध करे. दोस्त मोहम्मद ने बाड़ी बरेली के राजा का कत्ल कर दिया. बदले में रानी ने अपने इस राखी भाई को जागीर और बहुत सा धन दिया. धन और जागीर पाने के बाद और शक्तिशाली हो गये दोस्त मोहम्मद ने भोपाल की रानी और अपनी राखी बहन कमलावती का सफ़ाया कर दिया और पूरे भोपाल राज्य को ही हड़प लिया.
ये है हकीकत इन ऐतिहासिक हिन्दु-मुस्लिम राखी भाई-बहनों की.....
सभी को रक्षाबन्धन की हार्दिक शुभकामनायें.....
जय श्रीराम.......

Wednesday, June 6, 2012

क्या आप कोलगेट करते हैं??????

एक बार राजीव दीक्षित जी दिल्ली यूनिवर्सिटी में एक लेक्चर कर रहे थे. डिपार्टमेंट ओफ़ मैथामेटिक्स में वहाँ के प्रोफ़ेसर से राजीव जी ने पूछा - आप कोलगेट क्यों इस्तेमाल करते हैं.
प्रोफ़ेसर बोला- क्योकि इसकी क्वालिटी बहुत अच्छी होती है. इसमें बहुत अच्छा छाग बनता है. राजीव जी ने प्रोफ़ेसर को सलाह दी- अगर छाग ही चाहिये तो साबुन इस्तेमाल करो, एरियल इस्तेमाल करो उसमें तो सबसे ज्यादा छाग बनता है. नही तो शेविंग क्रीम इस्तेमाल करो उससे भी बहुत अच्छा छाग बनता है.
प्रोफ़ेसर एकदम चुप. कुछ देर बाद प्रोफ़ेसर से राजीव जी प्रश्न किया- आपही बताइये क्वालिटी क्या होती है?????
राजीव जी प्रोफ़ेसर से बोले-मैथामेटिक्स के प्रोफ़ेसर होके नही जानते की क्वालिटी क्या होती है तो सीधा बोला करो, हम विज्ञापन देखकर समान खरीद लाते हैं
तब राजीव जी ने प्रोफ़ेसर को समझाया कि - कोलगेट जिससे बनता है यह देखने वाली क्वालिटी है. तब उन्होंने बताया- एक कैमिकल होता है ''सोडियम लोरेन सल्फ़ेड''. इससे कोलगेट बनता है. सोडियम लोरेन सल्फ़ेड डाले बिना किसी भी कोलगेट में झाग नही बन सकता. अगर आप कैमिस्ट्री की डिक्क्षनरी में देखेंगे तो पायेंगे कि उसके सामने लिखा है- ''पोयज़न'' अर्थात् यह जहर है. दशमलव पाँच मिलिग्राम मात्रा में शरीर में जाये तो कैंसर कर देता है और वह कोलगेट में भरपूर मात्रा में मिलाया जाता है. आपनी बात बढ़ाते हुये राजीव जी प्रोफ़ेसर से बोले- आपको एक जानकारी और दूँ, अमेरिका और यूरोप के देशों में जब यह कोलगेट बेचा जाता है तो उस पर चेतावनी लिखनी पड़ती है. जैसे भारत में सिगरेट के पैकेट पर लिखा होता है. 'सिगरेट पीना स्वास्थय के लिये हानिकारक है'. वैसे कोलगेट के डिब्बे पर अंग्रेजी में लिखा होता है-
1 कोलगेट करना स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है.
2. छह साल से कम उम्र के बच्चों को यह कोलगेट मत देना क्योकि बच्चे उसे चाट लेते हैं और उसमें कैंसर करने वाला कैमिकल है. अगर गलती से किसी बच्चे ने कोलगेट कर लिया तो उसे तुरन्त होस्पिटल लेकर जाना. इतना खतरनाक है ये कोलगेट
3. अगर आप मैच्योर हैं तो बहुत ही कम मात्रा में लें अर्थात मटर के दाने से भी आधा...........

Tuesday, June 5, 2012

सन् 1885 एक अंग्रेज लार्ड एलैग्जेण्डर ओक्टोवियम ह्रूम ने बम्बई के गोकुलदास तेजपाल भवन में ''कांग्रेस क्लब'' बनाया था जिसका उद्देश्य केवल मनोरंजन करना और करवाना था क्योकि गाँधी ने इसी क्लब के माध्यम से अपने सारे आन्दोलन करने शुरु कर दिये इसलिये इसे कांग्रेस पार्टी का नाम दे दिया गया.... जो आज भी अपनी नींव के साथ बहुत मजबूती के साथ जुड़ी है तभी तो आये दिन पार्टी मेयम्बर मनोरंजन करते रहते हैं और जनता के मनोरंजन के लिये पोर्न विडियोज प्रसारित करवाते रहते हैं.

Sunday, May 27, 2012

काम पिपासु ही नही ..... सत्ता पिपासु भी थे हमारे कथित चचाजान


आज हमारे कथित चचाजान जवाहरलाल नेहरु का मृत्यु दिवस है. भतीजा-भतीजी होने के नाते हमे अपने चचाजान को याद करने का हक तो बनता ही है. तो आज हम याद करते हैं कि हमारे चचाजान देश के प्रथम प्रधानमंत्री कैसे बने.
आजादी के समय कांग्रेस वर्किंग कमेटी में यह फ़ार्मूला निकाला गया था कि कांग्रेस के तमाम प्रदेशों के अध्यक्ष जिसके नाम पर सर्वाधिक वोट ड़ालेंगे वही कांग्रेस का अध्यक्ष बनेगा और वही देश का प्रथम प्रधानमंत्री बनेगा. इसी फ़ार्मूले के आधार पर वोट ड़लवाये गये.
क्योंकि हमारे चचाजान श्रीजवाहरलाल नेहरु एक नम्बर के अय्याश और रंगीन मिजाज के थे और लेडी माउंट बेटन के साथ जो उनके समबन्ध थे उसके बारे में देश का बच्चा-बच्चा जानता था इसलिये ऐसे चरित्रहीन व्यक्ति का हारना स्वभाविक ही था और हुआ भी यही वोटिंग में चचा को केवल 1 वोट मिला और सरदार पटेल को 14 वोट मिले. मतलब की चचा हार गये.
चचा की गंजी खोपड़ी को समझ आ गया कि फ़ार्मूले के हिसाब से तो वो प्रधान मंत्री बनने से रहे. तब हमारे सत्ता पिपासु, लालची चचाजान ब्लैक मैलिंग पर उतर आये और पहुँच गये हमारे कथित राष्ट्रपिता करमचंद के पास और कट टू कट बोले- अगर मैं प्रधानमंत्री नही बना तो मैं कांग्रेस को तोड़ दूंगा और अगर कांग्रेस टूट जायेगी तो अंग्रेज हिंदुस्तान से नही जायेंगे और उनको यह बहाना मिल जायेगा कि कौन सी कांग्रेस को हम सत्ता दें. जो कांग्रेस नेहरुवादी है या जो बाहरवाली कांग्रेस है.
और हमारे कथित बापू हो गये ब्लैक मैलिंग के शिकार.और लिख डाली सरदार पटेल को एक प्रसनल चिठ्ठी. (जिसका रिकार्ड़ गाँधी के सेक्रेटरी प्यारे लाल की लिखित किताब ''पूर्ण आहूति'' में प्रकाशित है.) कि सरदार पटेल मैं जानता हूँ कि तुम जीत गये हो. लेकिन नेहरु इस समय सत्ता के मद में अँधा हो गया है और कांग्रेस को तोड़ने की बात कर रहा है और अगर इस समय कांग्रेस टूट गई तो अंग्रेज जायेंगे ही नही. उनको बहाना मिल जायेगा कि हिन्दुस्तान में हम कौन सी कांग्रेस को सत्ता सौंपे. कांग्रेस न टूटे. इसलिये मैं चाहता हूँ कि तुम अपना नाम वापिस ले लो.
सरदार पटेल ने सीधा बापू से मिलकर कहा कि - बापू अगर ये आपकी आर्न्तात्मा है तो मैं हमेशा से आपका सेवक रहा हूँ. आप कहते हैं तो मैं अपना नाम वापिस ले लेता हूँ और दरियादिली दिखाते हुये सरदार पटेल ने अपना नाम वापिस ले लिया.
इस तरह की चालबाजी से हमारे प्यारे चचाजान हिन्दुस्तान के प्रथम प्रधानमंत्री बनें.
ऐसे कथित चचा के मृत्यु दिवस पर, चचा 420 को सादर नमन.....

Saturday, April 28, 2012

यह पढ़ाया जा रहा है आपके बच्चों को.....

यह पढ़ाया जा रहा है आपके बच्चों को.....

वैदिक काल में विशिष्ट अतिथियों के लिए गोमांस का परोसा जाना सम्मान सूचक माना जाता था।

(कक्षा 6-प्राचीन भारत, पृष्ठ 35, लेखिका-रोमिला थापर)

महमूद गजनवी ने मूर्तियों को तोड़ा और इससे वह धार्मिक नेता बन गया।

(कक्षा 7-मध्यकालीन भारत, पृष्ठ 28)

1857 का स्वतंत्रता संग्राम एक सैनिक विद्रोह था।

(कक्षा 8-सामाजिक विज्ञान भाग-1, आधुनिक भारत, पृष्ठ 166, लेखक-अर्जुन देव, इन्दिरा अर्जुन देव)

महावीर 12 वर्षों तक जहां-तहां भटकते रहे। 12 वर्ष की लम्बी यात्रा के दौरान उन्होंने एक बार भी अपने वस्त्र नहीं बदले। 42 वर्ष की आयु में उन्होंने वस्त्र का एकदम त्याग कर दिया।

(कक्षा 11, प्राचीन भारत, पृष्ठ 101, लेखक-रामशरण शर्मा)

तीर्थंकर, जो अधिकतर मध्य गंगा के मैदान में उत्पन्न हुए और जिन्होंने बिहार में निर्वाण प्राप्त किया, की मिथक कथा जैन सम्प्रदाय की प्राचीनता सिद्ध करने के लिए गढ़ ली गई।

(कक्षा 11-प्राचीन भारत, पृष्ठ 101, लेखक-रामशरण शर्मा)

जाटों ने, गरीब हो या धनी, जागीरदार हो या किसान, हिन्दू हो या मुसलमान, सबको लूटा।

(कक्षा 12 - आधुनिक भारत, पृष्ठ 18-19, विपिन चन्द्र)

रणजीत सिंह अपने सिंहासन से उतरकर मुसलमान फकीरों के पैरों की धूल अपनी लम्बी सफेद दाढ़ी से झाड़ताथा।

(कक्षा 12 -पृष्ठ 20, विपिन चन्द्र)

आर्य समाज ने हिन्दुओं, मुसलमानों, पारसियों, सिखों और ईसाइयों के बीच पनप रही राष्ट्रीय एकता को भंग करने का प्रयास किया।

(कक्षा 12-आधुनिक भारत, पृष्ठ 183, लेखक-विपिन चन्द्र)

तिलक, अरविन्द घोष, विपिनचन्द्र पाल और लाला लाजपतराय जैसे नेता उग्रवादी तथा आतंकवादी थे

(कक्षा 12-आधुनिक भारत-विपिन चन्द्र, पृष्ठ 208)

400 वर्ष ईसा पूर्व अयोध्या का कोई अस्तित्व नहीं था। महाभारत और रामायण कल्पित महाकाव्य हैं।

(कक्षा 11, पृष्ठ 107, मध्यकालीन इतिहास, आर.एस. शर्मा)

वीर पृथ्वीराज चौहान मैदान छोड़कर भाग गया और गद्दार जयचन्द गोरी के खिलाफ युद्धभूमि में लड़ते हुए मारा गया।

(कक्षा 11, मध्यकालीन भारत, प्रो. सतीश चन्द्र)

औरंगजेब जिन्दा पीर थे।

(मध्यकालीन भारत, पृष्ठ 316, लेखक-प्रो. सतीश चन्द्र)

राम और कृष्ण का कोई अस्तित्व ही नहीं था। वे केवल काल्पनिक कहानियां हैं।

(मध्यकालीन भारत, पृष्ठ 245, रोमिला थापर)

(ऐसे दर्जनों आपत्तिजनक बिन्दु और भी हैं)

आजकल इतिहास की जो नयी किताबे छापी जा रही हैं उनमें रोमिला थापर जैसी लेखको ने मुसलमानों द्वारा धर्म के नाम पर काफ़िर हिन्दुओं के ऊपर किये गये भयानक अत्याचारों को गायब कर दिया है. नकली धर्मनिरपेक्षतावादी नेताओं की शह पर झूठा इतिहास लिखकर एक समुदाय की हिंसक मानसिकता पर जानबूझकर पर्दा ड़ाला जा रहा है. इन भयानक अत्याचारों को सदियों से चली आ रही गंगा जमुनी संस्कृति, अनेकता में एकता और धार्मिक सहिष्णुता बताकर नौजवान पीढ़ी को धोखा दिया जा रहा है. उन्हें अंधकार में रखा जा रहा है. भविष्य में इसका परिणाम बहुत खतरनाक होगा क्योकि नयी पीढ़ी ऐसे मुसलमानों की मानसिकता न जानने के कारण उनसे असावधान रहेगी और खतरे में पड़ जायेगी.
सोचने का विषय है कि आखिर किसके दबाव में सत्य को छिपाया अथवा तोड़ मरोड़ कर पेश किया जा रहा है?????

Monday, April 2, 2012

इस फोटो को ध्यान से देखिये l

हिन्दुओं की लाशो को गिद्ध खा रहे हैं, ये नर संहार हिन्दुओं द्वारा गाँधी जैसे लोगों पर किये गए vishwas का फल है..... अक्टूबर १०,१९४६ ,कोजगारी लक्ष्मी पूजा का दिन ......टिप्पर और नाओखाली में शाम तक ७००० हिन्दुओं का क़त्ल ऐ आम हुआ ....बलात्कार ,हत्या और न्रिशंस्ता की हर हदें पार हुई इतना भीषण नर संहार हुआ की अखबार statesman के अनुसार "२००० वर्ग किलोमीटर का इलाका शमशान घाट बनाया गया और फिर जाकर कुछ लाशों को दफ़न किया गया सामूहिक रूप से"

Wednesday, March 14, 2012

बदल गई है श्रीमद्भागवत गीता नीति...

आजकल हमारे कुछ धर्माचार्यों ने धर्म की परिभाषा ही बदल दी है क्योकि ये सर्वधर्म समभाव, वसुधैवकुटुम्बकम, क्षमा वीरस्य भूषणम् और अव्यवहारिक अहिंसा तथा अतिसहिष्णुता जैसे सतयुगी उपदेश देते हैं. बड़ी बेशर्मी के साथ सर्वे भवन्तु सुखिनः हमारा नारा है का उपदेश देते हैं. ऐसे पाखंड़ी लोग झूठे लोगों द्वारा लिखे गये साहित्य व अव्यवहारिक कहानियां सुनाकर हिन्दुओं को भ्रमित करते हैं.
बड़े ही आत्मविश्वास के साथ बोलते हैं कि हिन्दु धर्म की रक्षा के लिये भगवान अवतार लेंगे. फ़िर इन्हे भगवान के अवतारों की कहानियां सुनाकर अपनी बात को सत्य सिद्ध करते हैं.
इन महानुभावों से प्रश्न है कि इन्हें केवल भगवान के अवतार ही क्यों नजर आते हैं? ये धर्मावलम्बी क्यों नही समझाते की भगवान ने केवल राक्षसों का संहार करने के लिये ही नही अपितु उन्होने समाज को यह संदेश देने के लिये कि - उनसे प्रेरणा पाकर लोग स्वयं उठ खड़े होना, अपना धर्म समझे और देवी-देवताओं द्वारा धारण किये गये हथियारों से प्रेरणा पाकर लोग खुद शक्तिशाली बने. लेकिन कुछ कायरों ने इसका अर्थ यह दे दिया कि जब भी अत्याचारी अत्याचार करेंगे तो तुम्हारी रक्षा के लिये भगवान अवतार लेंगे.
इसीलिये कठिनाईयों और खतरों का सामना करने के स्थान पर हिन्दु चमत्कारों की प्रतिक्षा में देवी-देवताओं के सहारे बैठे रहते हैं परन्तु हिन्दुओं को समझ लेना चाहिये की कलियुग में अवतार नही होते. अपनी तथा अपनी सन्तानों के भविष्य और अपने धर्म की रक्षा स्वयं हिन्दुओं को ही करनी होगी. भगवान उसी की रक्षा करते हैं, जो खुद अपनी रक्षा का पूरा प्रयास करते हैं क्यों तुम्हे भगवान के अवतार ही नजर आते हैं हर अवतार में धारण किये गये उनके हथियार क्यों नही दिखते. बस जिससे कायरता छिप सके वही चीज़ दिखती है शूरवीरों की बातें नही दिखती. गीता का सिर्फ़ यही संदेश ही जीवन मे उतारा कि हिन्दु धर्म की रक्षा के लिये भगवान अवतार लेंगे लेकिन यह क्यों दिखा कि भगवान ने स्वयं बोला है कि केवल ईश्वर अथवा भाग्य के सहारे बैठ कर अकर्मण्यता मतकर. अत्याचारियों से मुकाबला किये बिना तू अत्याचार से बच नही सकता. इसलिये तू सदैव ईश्वर का स्मरण करते हुये युद्ध भी कर. (कर्म कर).
लेकिन हम हिन्दुओं ने भगवान के इस आदेश को नही माना और अत्याचारों का मुकाबला करने के स्थान पर अत्याचारों को सहना ही अपना धर्म बना लिया. इसी अव्यवहारिक अहिंसा और अतिसहनशीलता या अतिसहिष्णुता को हमारी कमजोरी व डरपोकपन समझकर हम पर और अत्याचार किये गये. गीता मे भगवान ऐसी अहिंसा व सहिष्णुता को नपुसंकता कहकर उससे दूर रहने को कहते हैं. सहिष्णुता और अहिंसा का अर्थ यह नही कि अपनी गरदने कटवाने की रुपरेखा खुद तैयार की जाये और प्रेम पूर्वक गुलाम बन जाया जाये तथा इस अहिंसा और सहिष्णुता के नाम पर अत्याचारियों को अपने ऊपर अत्याचार करने की खुली छूट दे दी जाये. अत्याचारों और अत्याचारियों की अनदेखी करना हिंसा को बढ़ावा देना है, जो अहिंसा न होकर सबसे बड़ी हिंसा है, पाप है.
इसलिये भूल जाओ ऐसी अव्यवहारिक अहिंसा को मिटा दो अतिसहिष्णुता रुपी नपुसंकता को क्योकि आत्मरक्षा और आत्मसम्मान ही सबसे बड़ा धर्म है. यह पृथ्वी कर्म-भूमि है. यहां रहने वाले मनुष्य को अंतिम समय तक धर्म और समाज के प्रति संवेदनशील और कर्मशील रहना चाहिया. यही श्रीमद्भागवत में श्रीकृष्ण का आदेश है. यही ऋषि-मुनियों की शिक्षा है.
यह गाल पिटे वह गाल बढ़ाओ, यह तो आर्यो की नीति नही
अन्यायी से प्रेम अहिंसा यह तो गीता की निति नही
हे राम बचाओ जो कहता है, वह कायर है खुद अपना हत्यारा है.
जो करे वीरता अति साहस वही राम का प्यारा है.

Wednesday, March 7, 2012

मुझ पर हंसने वालों एक दिन दुनिया तुम पर हंसेगी.....!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

मेरे फ़ेल होने का जश्न मनाने वालों जीते तुम भी नही हो. इसलिये मुझ पर हंसने से पहले तुम्हें मुलायम राज का शोक मनाना चाहिये और आत्म मंथन करना चाहिये कि जिस मुलायम के शासन काल में बलात्कार, रंगदारी, अवैध वसूली, अपहरण, आतंकवाद को संरक्षण देना चर्मोत्कर्ष पर था, उसी गुण्ड़ाराज को उत्तर-प्रदेश की जनता ने दुबारा क्यों चुना???? क्या वजह है कि मायावती अपनी हार की वजह मुसलिम मतदाताओं को मान रही हैं.
सोचिये कही सचमुच ऐसा तो नही है कि मुसलिम जिसे जिताना चाहे उसे जिता सकते हैं और अगर ऐसा है तो वह अगर अपने मोहरे (मुलायम) को सत्ता के सिंहासन पर बैठा सकते हैं. तो अपने मुल्ला नेता को क्यों नही????? सोचिये अगर वह यू.पी. मे अपनी ताकत के बल पर सरकार बना सकते हैं तो वह दिन भी दूर नही जब अधिकतर लोकसभा क्षेत्रों से मुसलमान उम्मीदवार चुनाव जीतकर दिल्ली में मुल्लावादी सरकार बना देंगे. उसके बाद इस भारतीय सविधान की जगह कुरान का कानून जिसे शरियत का कानून कहते हैं लागू होगा. तब हिन्दुओं की धन-दौलत, फ़ैक्ट्री, व्यापार, खेत और मकान, हिन्दुओं द्वारा बनवाये गये स्कूल, अस्पताल, धर्मशाला और मंदिर आदि पर मुसलमानों का कब्जा होगा. फ़िर कुरान के आदेशानुसार काफ़िर हिन्दुओं के कत्लेआम के साथ उनकी लड़कियों व औरतों को पकड़कर मुसलमान बनाने का सिलसिला शुरु होगा. प्रत्यक्ष रुप से माना जाये तो फ़िर से मुगल सल्तनत शुरु हो जायेगी.
सोचिये... जिस दिन मुसलमान अपने वोट के बल पर शासन में आ गये तो वह वैध तरीके से भारत की सत्ता पर सदैव के लिये कब्जा जमा लेंगे. तब हिन्दु, मुल्ला गुलामी से कभी बाहर नही निकल पायेगा और अबकि उन्हें कोई अंग्रेज भी बचाने नही आयेगा (अंग्रेजो का नाम लेने का यह मतलब नही कि अंग्रेजों की गुलामी सही थी परन्तु उनकी गुलामी मुसलिम गुलामी से सभ्य थी) क्योकि वे वैध तरीके से भारत की सत्ता हासिल करेंगे.
इतिहास इस बात का गवाह है कि हिंसावादी कट्टर मुसलमानों के हाथों में जब-जब भारत का राज आया है उन्होंने हिन्दुओं को मारा, काटा, लूटा और अपमानित किया तथा उनकी औरतों और लड़कियों को छीना. तलवार के जोर पर आतंक फ़ैला कर अपने धर्म का विस्तार किया. हिन्दुओं को नरक से भी ज्यादा कष्टप्रद जीवन जीने को मजबूर किया.
अब बहुत से बुद्धिजीवी यह कह सकते हैं कि यह सब पुरानी बातें है आज से इन बातों का कोई सरोकार नही है तो यह बुद्धिजीवी कृप्या मुसलिम बहुल इलाकों की तरफ़ देखें की खतरे की घण्टी बज चुकी है जहाँ पर भी मुसलिमों का दबदबा है. वहा पर हिन्दु पूजा पद्धतियों पर रोक टोक शुरु हो चुकी है. कुछ दिनों पहले ग्वालियर में एक स्थान पर राम कथा शुरू होनी थी .... पर SDM ने इसलिए अनुमति नहीं दी क्योकि कुछ मुस्लिमो ने आरोप लगाया था की हिन्दू शोर बहुत करते ... तब स्थान बदलने पर ही कथा पूर्ण हो पाई .... विदित हो की उसी मैदान में कुछ दिनों पहले कव्वालियों का प्रोग्राम हुआ था ...
उससे पहले की भी एक घटना जिसे धर्मनिरपेक्षता के नाम पर मीडिया ने दिखाना उचित नही समझा कि हैदराबाद में भी मंदिर में घंटिया बजाने पर रोक लगाने का प्रयास किया गया.
सोचिये जब पूर्ण बहुतमत से मुस्लिम सत्ता हासिल करेंगे तब हिन्दुस्तान में हिन्दुओं का क्या हर्ष होगा.
इसलिये सभी हिन्दु मित्रों से अनुरोध है कि हिन्दुस्तान पर मंड़राते हुये इस भयानक खतरे को पहचानों और अगर अपना जीवन, अपना धन, अपना धर्म और अपनी नारियों को बचाना है तो आज और अभी सौगन्ध खाकर प्रतिज्ञा करो कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक, कच्छ से लेकर आसाम तक हम एक हैं.. न ब्राह्मण हैं न क्षत्रिय हैं, न वैश्य हैं ना शूद्र हैं. हम केवल हिन्दु हैं. इस तरह एक विशाल हिन्दु वोट बनायेंगे. आज का सबसे बड़ा पुण्य कार्य यही है. यह आत्म रक्षा का धर्म है.
नही तो वह दिन दूर नही जब दुनिया हिन्दुओं की बेवकूफ़ी पर हंसेगी....
जय श्रीराम....

Tuesday, March 6, 2012

सम्मान बचाने के लिये आत्महत्या !!!!!!!!!!

आज एक मित्र से आत्महत्या के बारे में चर्चा करते हुये विश्वनाथ प्रताप सिंह का शासन काल याद आ गया कि किस तरह मंडल आयोग की सिपारिश लागू करने के कारण जिसमे २७% आरक्षण लागू कर दिया गया था के विरोध में हिन्दु नौजवानों ने महान कायरता और नपुसंकता का प्रदर्शन करते हुये खुद को आग में जलाना (आत्मदाह) शुरु कर दिया था. नौजवानों मे आत्मदाह कर अपने को जिन्दा जला ड़ालने की होड़ मची हुई थी. यह सब करके हिन्दु नौजवानों ने इतिहास को दोहरा दिया कि इनसे बड़ा कायर नपुसंक इस दुनिया में कोई माई का लाल नही है. यह कोई पहला मौका नही था कि जब हिन्दुओं ने मुकाबला करने के स्थान पर आत्महत्या की हो.
सन् 1000 में जब हिन्दु राजा जयपाल महमूद गजनवी से परास्त हुआ तो पुनः महमूद से बदला लेने के स्थान पर वह जिन्दा ही चिता में जलकर मर गया. सन् 1003 में भेरा के राय को जब महमूद गजनवी ने हराया तो पुनः मुकाबला करके बदला लेने के स्थान पर वह भी आत्महत्या करके मर गया. सन् 1527 में बाबर ने जब चन्देरी पर हमला किया तो चन्देरी के राजा मोदिनीराय तथा उसके अन्य सहयोगी राजपूतों ने अपनी स्त्रियों और बच्चों को जिन्दा जला दिया और खुद निहत्थे तथा नंगे होकर किले के बाहर दौड़ पड़े. जिससे वह रणक्षेत्र में मरकर स्वर्ग जा सकें. वीरता से युद्ध करने के स्थान पर, दुश्मन के हाथों केवल मर कर स्वर्ग जाने की इच्छा रखने वाले उन राजपूतों के सिर धड़ से अलग करवा दिये. काटे गये सिरों को चन्देरी की पहाड़ी पर एक के ऊपर एक रखकर इन सिरों का विशाल गुम्बद बनवाया. इस तरह अपनी विजय का जश्न मनाकर, उनको सड़ने और चील कौवों के खाने के लिये छोड़कर दिल्ली वापस लौट गया.
मौहम्मद शहाबुद्दीन गौरी ने सन् 1192 में पृथ्वीराज चौहान को हराकर बाद में उसकी हत्या कर दी. पृथ्वीराज की मौत का बदला लेने के लिये पृथ्वीराज के छोटे भाई हरिराज ने सेना इकठ्ठी की और सन् 1195 में दिल्ली में हमला कर दिया. मोहम्मद गोरी के सेनापति कुतुबुद्दीन ऐबक ने इस सेना को मार भगाया तथा उसका पीछा करते हुये अजमेर आ गया और अजमेर के किले को घेर लिया. इस किले के अन्दर बैठे हरिराज ने कुतुबुद्दीन का मुकाबला करने के स्थान पर आग लगाकर आत्महत्या कर ली.
जिसे इन मूर्ख राजाओं ने आत्मसम्मान की मौत का रास्ता माना परन्तु यह गीता के सिद्धांतो के एकदम विपरीत था क्योकि भगवान श्रीकृष्ण ने गीता मे स्पष्ट कहा है कि अत्याचारियों का मुकाबला किये बिना, उनके द्वारा मर जाना, स्वर्ग का रास्ता ना होकर, नरक का रास्ता है. स्वर्ग तो वीरता से मुकाबला करने वाले वीरों के लिये है.
अन्याय के विरुद्ध इन अत्याचारियों से युद्ध करते हुये तू यदि मारा जायेगा, तो स्वर्ग को प्राप्त करेगा अथवा विजयी होकर इस पृथ्वी का भोग करने के उपरान्त स्वर्ग को प्राप्त होगा.
किन्तु यदि तू इस धर्म युद्ध को नही करेगा तो अपने धर्म और यश को खोकर पाप को प्राप्त होगा. इसलिये तू उठ ! शत्रुओं का विनाश कर, यश को प्राप्त कर धन-धान्य से पूर्ण राज्य का भोग कर.
यह अच्छी तरह समझ लो की ड़रपोक और कायरों का भगवान भी साथ नही देते. भगवान भी उन्हीं का ही साथ देते हैं जो अपनी रक्षा के लिये स्वयं आगे बढ़ते हैं.
इसलिये भूल जाओं अव्यवहारिक अहिंसा को और मिटा दो अतिसहिष्णुता रुपी नपुसंकता को समझ लो कि कोई भी लड़ाई मर कर नही जीती जा सकती जी कर ही लड़ाई जीती जा सकती है क्योकि मरने के बाद तो लड़ाई स्वतः ही समाप्त हो जायेगी. इसलिये याद रखो-
यह गाल पिटे वह गाल बढ़ाओ, यह तो आर्यों की नीती नही.
अन्यायी से प्रेम अहिंसा, यह तो गीता की नीति नही.
हे राम बचाओ जो कहता है, वह कायर हे, खुद अपना हत्यारा है.
जो करे वीरता अति साहस, वही राम का प्यारा है.

Sunday, March 4, 2012

हिन्दु से बेशर्म कोई जाति नही.....

(हो सकता है मेरे शब्द लोगों को बुरे लगे पर गजनवी के बारे में पढ़कर खून जल रहा है कि हिन्दु कैसी कौम है जो कभी गलत का विरोध नही करती. क्यो भगवान और भाग्य के भरोसे बैठे रहते हैं हम. अगर कोई कहता है कि हिन्दुओं ने वीरता का कार्य किया था तो हम अपने यह शब्द वापिस लेकर क्षमा चाहते हैं.)
कुछ सालों पहले (शायद 2006 में) अभय भारत मासिक पात्रिका के संस्थापक व पूर्वी दिल्ली से भूतपूर्व लोकसभा सदस्य श्री बी.एल.शर्मा जी से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था वह ओफ़िस में किसी मित्र को बता रहे थे कि वह बचपन में गजनी गये थे. वहां उन्होंने उस जगह को देखा जहाँ हिन्दु औरतों की नीलामी हुई थी. उस स्थान पर मुसलमानों ने एक स्तम्भ बना रखा है. जिसमे लिखा है- 'दुख्तरे हिन्दोस्तान, नीलामे दो दीनार'. अर्थात इस जगह हिन्दुस्तानी औरतें दो-दो दीनार में नीलाम हुई. उस समय तो यह सब बाते समझ नही आई पर आज उस वाक्य के बारे में जानने की इच्छा हुई. खोजने पर पता चला कि - महमूद गजनवी ने हिन्दुओं को अपमानित करने के लिये अपने 17 हमलों में लगभग 4 लाख हिन्दु औरतें पकड़ कर गजनी उठा ले गया. महमूद गजनवी जब इन औरतों को गजनी ले जा रहा था तो वे अपने भाई, और पतियों से बुला-बुला कर बिलख-बिलख कर रो रही थी. और अपने को बचाने की गुहार लगा रही थी. लेकिन करोडो हिन्दुओं के बीच से मुठ्ठी भर मुसलमान सैनिकों द्वारा भेड़ बकरियों की तरह ले जाई गई. रोती बिलखती इन लाखों हिन्दु नारियों को बचाने न उनके पिता आये, न पति न भाई और न ही इस विशाल भारत के करोड़ो हिन्दु. उनकी रक्षा के लिये न तो कोई अवतार हुआ और न ही कोई देवी देवता आये. महमूद गजनवी ने इन हिन्दु लड़कियों और औरतों को ले जाकर गजनवी के बाजार में समान की तरह बेंच ड़ाला.
संसार की किसी कौम के साथ ऐसा अपमान नही हुआ. जैसा हिन्दु कौम के साथ हुआ. और ऐसा इसलिये हुआ क्योंकि वह सोचते हैं कि जब अत्याचार बढ़ेगा तब भगवान स्वयं उन्हें बचाने आयेंगे परन्तु इतिहास से सबक लेते हुये हिन्दुओं को समझ लेना चाहिये कि भगवान भी अव्यवहारिक अहिंसा व अतिसहिष्णुता को नपुसंकता करार देते हैं. क्योकि भगवान ने अपने सभी अवतारों में यही संदेश दिया है कि अपनी रक्षा स्वयं करों. तुम्हारी आँखे मैने आगे दी हैं गलत का विरोध करो. पीछे मै सदैव तुम्हारे साथ खड़ा हूँ. परन्तु अत्याचारियों का मुकाबला किये बिना, उनके द्वारा मर जाना, स्वर्ग का रास्ता न होकर नरक का रास्ता है. याद रखो-
यह गाल पिटे वह गाल बढ़ाओ, यह तो आर्यो की नीति नही
अन्यायी से प्रेम अहिंसा यह तो गीता की निति नही
हे राम बचाओ जो कहता है, वह कायर है खुद अपना हत्यारा है.
जो करे वीरता अति साहस वही राम का प्यारा है.

Sunday, February 12, 2012

हिन्दु ग्रन्थ सत्य या साई सत्य??????

भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भूत प्रेत, मूर्दा (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र अथवा समाधि) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत-प्रेत ही बनते हैं. यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपिमाम्. मरे हुये साई बाबा और उनके कब्र की पूजा क्यों की जाती है? मतलब भागवत गीता के कथन असत्य हैं इसीलिये उसके कथन को नकारा जाता है????
हिन्दु ग्रंथो के अनुसार भगवान का अवतार किसी विशेष कार्य अथवा मनुष्यों के संकट निवारण हेतु होता है. साई के जन्म का क्या उद्देश्य था????? साई अवतार में उन्होंने लोगों को किस संकट से मुक्ति दिलाई? ??? अब यदि यह कहा जाये की साई बाबा ने धर्म, सम्प्रदाय, जाति-पाति का सदा विरोध किया तो ऐसे बहुत संत सन्यासी हुये हैं, जिन्होंने ऐसी समाजिक बुराईयों का विरोध किया. सिर्फ़ साई बाबा को इतनी मान्यता क्यों?
किसी भी हिन्दु ग्रन्थ में संत सन्यासियों के लिये आदर भाव तो बताया गया है परन्तु भगवान कभी नही माना गया तो साई बाबा को भगवान की संज्ञा क्यों दी जाती है?????
हिन्दु ग्रन्थों में भगवान विष्णु के दशावतार (मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन, नृसिंह, परशुराम, राम, कृष्ण, बुद्ध, कल्की) बताये गये हैं जिनमें से दसवां व आखिरी कल्कि अवतार कलयुग के नाश के लिये होगा. किसी भी हिन्दु ग्रन्थ में साई अवतार का कोई जिक्र नही है. तो कैसे साई को अवतारवाद की संज्ञा दी जाती है????? अब या तो हिन्दु ग्रन्थ असत्य हैं या साई बाबा……

Saturday, February 11, 2012

साई पूजना सचमुच भक्ति या अन्धविश्वास की पराकाष्ठा??????

यह पोस्ट केवल कट्टर हिन्दुत्व का दम्भ भरने वाले उन लोगों से एक प्रश्न हैं जो साई को पूजते हैं और खुद को कट्टर हिन्दुवादी भी कहलाना पसन्द करते हैं. कृप्या वही लोग इस पोस्ट का हिस्सा बनें.

सबसे पहले कट्टरवाद तो वही है जो सिर्फ़ अपने ईश्वर, धर्म और संस्कारों में विश्वास रखे. जैसे कि मुस्लिम.

मुस्लिम सम्प्रदाय को हमारे हिन्दु भगवा वस्त्रों, तिलक, मंदिरों की घंटियों, पूजा ध्वनियों इत्यादि सभी चीजों से नफ़रत है. ऐसी कोई हिन्दु वस्तु नही जिसे वे सम्मान की दृष्टि से देखें.

और हम हिन्दु सुबह उठते ही एक ऐसे बाबा को पूजते हैं जो केवल मुल्ला वस्त्र ही धारण करता था. जो हमेशा मुल्ला टोपी धारण करता था. कुल मिलाकर उसके आचरण या पहनावे में कुछ भी हिन्दु था. तो हम कट्टर हिन्दुवादी कैसे हो सकते हैं?????

क्या हमारे हिन्दु धर्म के किसी एक संत का नाम मेरे कट्टर हिन्दु मित्र बता सकते हैं जिसे मुसलमानों ने स्वीकार किया हो????

साई जिसका सबसे बड़ा संदेश यही था - "सबका मालिक एक" लेकिन कौन आज तक नही पता चला. मेरे अनुसार उनका इशारा अल्लाह की तरफ़ होगा क्योकि उनका पहनावा-आचरण व्यवहार सब मुस्लिम ही था और वह रहते भी मस्जिद में ही थे तो अनुमान यही कहता है.

अब उनके संदेश को दूसरे तरीके से समझने की कोशिश करते हैं. - "सबका मालिक एक" मतलब हिन्दु, मुस्लिम, क्रिश्चिन इत्यादि सभी धर्मों के मालिक एक ही है तो ये धर्म के बीच लड़ाई क्यों????? सभी लोग भाई-बधुत्व के साथ प्यार से रहो. सभी धर्मो को पूजो. क्योंकि आपके साई के अनुसार सभी धर्मो का मालिक एक है. यदि अब भी आपकी कट्टरता सभी धर्मो को मानने को नही कहती तो आप साई का अनुसरण नही कर रहे. तो क्यों मानते हैं साई को???????

कोई उन्हें कृष्ण का अवतार मानता है, कोई राम का तो कोई शिव का. मतलब वो हिन्दु भगवान के अवतार थे. तो मस्जिद में क्या करते थे? मन्दिर में क्या परेशानी थी उन्हें? मतलब साफ़ है कि वो भी सेकूलर थे. (लेकिन मेरा मानना है कि वो सिर्फ़ मुस्लिम धर्म ही मानते थे) सभी धर्मो को मानते थे. तो आप क्यों हिन्दुत्व का ड़ंका पीटते हैं? उनके आदर्शो पर क्यों नही चलते???? बन जाईये सेकूलर जैसा की आपके साई ने सिखाया है- "सबका मालिक एक" और अगर आपका भी मानना है कि सबका मालिक एक तो आप कट्टर धार्मिक नही है.

हमारे किसी भी हिन्दु देवी-देवता ने जब भी इस पृथ्वी पर अवतार लिया लोगों को पाप और आतंक से मुक्ति दिलाई. बिना पाप का सर्वनाश किये पृथ्वी नही छोड़ी. जब पृथ्वी चारों ओर से सुरक्षित हो गई तब उन्होंने अपने धाम को प्रस्थान किया. साई ने जब पृथ्वी पर जन्म लिया तो पूरा भारत उस समय अंग्रेज़ो के डंडे खा रहा था. भारत माता गुलामी की बेड़ियों में जकड़ी थी. हजारो गोमातायें रोज कटती रही. ये बचाना तो दूर उनके खिलाफ़ कभी एक शब्द तक नही बोला. आखिर क्यों ????

जबकि हमारे जितने भी हिन्दु संत सन्यासी हुये सभी ने कुरीतियों के खिलाफ़ आवाज उठाई. उसे समाप्त करने के लिये अपने सुखों की भी परवाह नही की. देश और समाज के लिये जीये और देश और समाज के लिये ही प्राण त्याग दिये. साई ने समाज से कौन सी कुरीति को दूर किया. क्या किया देश और समाज के लिये?????? आखिर क्यों देश को गुलामी के हालत में छोड़ गये?????

अब यदि आप कट्टर हिन्दुवादी हैं तो हिन्दु धर्म ग्रंथो को भी पूजते व मानते होंगे? स्कन्द पुराण के षष्ठम् अध्याय में स्पष्ट लिखा है कि कलयुग को समाप्त करने के लिये भगवान श्रीविष्णु अपना 10वां व आखिरी ''कल्कि अवतार'' लेंगे. लेकिन किसी भी हिन्दु धार्मिक ग्रंथ में साई का जिक्र नही है???? (अगर है तो कृप्या एक प्रति मुझे भी उपलब्ध कराने की कृपा करें ) ग्रंथ लिखने वाले ऋषि मुनि यदि साई के बाद के घटनाक्रमों का उल्लेख पुराणों में कर सकते थे तो साई का क्यों नही???? मतलब साफ़ है कि साई का अवतारवाद से कोई वास्ता नही था और ना ही वह कोई संत था. संत वही होता है जो लोगो को भगवान से जोड़े , संत वो होता है जो जनता को भक्तिमार्ग की और ले जाये, संत वो होता है जो समाज मे व्याप्त बुराइयों को दूर करने के लिए पहल करे. इस साई नाम के मुस्लिम फकीर ने जीवन में कभी भी हमारे राम या कृष्ण का नाम तक नहीं लिया और हम इस साई की काल्पनिक महिमा की कहानियो को पढ़ के इसे भगवान मान रहे हो. कितनी विचित्र मानसिकता है हम हिन्दुओं की. मेरे अनुसार तो यह एक भयानक मूर्खता है. इससे पता चलता है कि महान ज्ञानी ऋषि मुनियो के वंशज आज मूर्ख और कलुषित बुद्धि के हो गए है कि उन्हे भगवान और एक साधारण से मुस्लिम फकीर में फर्क नहीं आता..... जय श्रीराम.......


Tuesday, January 31, 2012

हिन्दी चीनी भाई-भाई!!!!!!!!!!!!!!!!!

यदि कोई हिन्दु मुस्लिम एकता की बात करता है तो सभी हिन्दुस्तानी लोगों को इसका समर्थन करना चाहिये, परन्तु दिल से सोचकर नही।
दिमाग से भलि प्रकार सोच कर.. कही यह हिन्दु-मुस्लिम एकता का नारा ''हिन्दी चीनी भाई-भाई'' जैसे वाला न हो.. जैसा की नेहरू ने अपनी चीन यात्रा पर, पंचशील योजना के दौरान दी थी... याद करों उस 'हिन्दी चीनी भाई-भाई' वाले डायलोग को... यही डायलोग बोलकर ही चीनियों ने 1962 के युद्ध में हमारे सैनिको को मौत के घाट उतार दिया था.... इसलिये हमेशा सतर्कता से ही एकता करें. इतिहास से सबक लेते हुये ही एकता के लिये आगे बढ़ें....

अखण्ड़ भारत...

हिन्दुओं अगर अपना जीवन, अपना धन, अपना धर्म, और अपनी नारियों को बचाना है अपनी संतानों का भविष्य सुरक्षित रखना है तो आज और अभी से सौगंध खाकर प्रतिज्ञा करो कि कश्मीर से कन्याकुमारी तक, कच्छ से लेकर आसाम तक हम एक हैं. न हम ब्राह्मण हैं, न क्षत्रिय हैं, न वैश्य हैं न शूद्र हैं, न हम ऊँच है, न नीच हैं, न स्वर्ण हैं न दलित हैं. हम एक हैं. हम एक हैं. अब हम विशाल हिन्दु वोट बैंक बनायें. आज का सबसे पुण्य कार्य यही है. यह आत्मरक्षा का धर्म है. जो सर्वोपरि है. इसी उद्देश्य से निकाल दो हिन्दु समाज से शूद्र या दलित जैसे शब्द, भूल जाओ अव्यवहारिक अहिंसा को, मिटा दो अतिसहिष्णुता रुपी नपुसंकता को और आओ बनाये एक हिन्दुस्तान.... अखण्ड़ भारत... हिन्दुस्तान जिन्दाबाद......

चाचू... मामू बनाकर चले गये.....

आदरणीय श्री जवाहर लाल नेहरु जिन्हें प्यार से हमारे हिन्दुस्तानी बच्चे चाचा नेहरु के नाम से जानते हैं. जिनके जन्मदिवस को ''बाल दिवस'' के रुप में मनाते हैं. लेकिन यह नही जानते की क्यों मनाते हैं तो चलो हम ही इस विषय पर कुछ प्रकाश ड़ालते हैं.
(मुझे इसका कारण कुछ भी नही दिखता.... परन्तु यदि मान रखा है तो इसका भी कुछ ठोस कारण तो जरुर ही होगा.)
इसका सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण कारण यह हो कि उन्होने देश के लिये व आने वाले भविष्य के लिये जो किया शायद कोई नही कर सकता.... इसका सबसे महत्वपूर्ण कारण - श्री जवाहरलाल नेहरु के कारण ही चीन ने सन् 1962 में भारत की 37555 वर्ग किलोमीटर जमीन पर कब्जा कर लिया. सन् 1964 व सन् 1971 के भारत पाकिस्तान युद्ध में हजारो भारतीय सैनिकों ने अपनी जान देकर पाकिस्तान की जमीन कब्जा किया, लेकिन पाकिस्तानी कब्जे वाले कश्मीर को वापस लिये बिना ही ताशकंद और शिमला समझौता करके यह जमीन और बांगलादेश में बन्दी बनाये गये 93 हजार पाकिस्तानी सैनिक पाकिस्तान को लौटा कर मातृ - भूमि पर मिट जाने वाले हजारों भारतीय सैनिकों के साथ विश्वासघात करने का काला कारनामा हमारे प्यारे चचा जान ने किया है. इसलिये ये सचमुच हिन्दुस्तान के चचा कहलाने के लायक है. जो चाचू... मामू बनाकर चले गये..... सब मिलकर मनाईये उनका जन्म दिवस ''बाल दिवस'' के रुप में.

हिन्दुओं की मूर्खता

बहाराइच उत्तर प्रदेश में गाजी मियाँ की मजार है. (कब्र) है, जिसको पूजने देश के कोने-कोने से हिन्दु आते हैं. यह गाजी मियाँ महमूद गजनवी के पुत्र सालार महमूद गजनवी थे. महमूद गजनवी द्वारा सोमनाथ मंदिर में भयानक मार काट के बाद मंदिर में लूटा गया धन इसी सालार मसूद गाजी की निगरानी में गजनी ले जाया गया था. सन 1030 में जब महमूद गजनवी की मृत्यु हो गई, तो सालार मसूद गाजी गजनी का बादशाह हुआ. बाद में 1040 में तुर्को ने गजनी को जीत लिया और सालार मसूद गाजी भारत की ओर भागा. उसे अपने इसी चारागाह की याद आई, जिसमें उसने अपने पिता के साथ बिना किसी खास रोक-टोक के लूटपाट , मारकाट की थी. यह याद आते ही सालार मसूद गाजी ने भारत में मारकाट और लूटपाट के साथ प्रवेश किया और बहराइच उ.प्र. तक जा पहुँचा, जहाँ राजा सुहेल देव पासी के हाथों मारा गया था. उसके सैनिकों ने उसे वहीं दफ़न कर दिया. जिसकी कब्र गाजी मियां के नाम से मशहूर है. आज उसी गाजी मियां को हिन्दु अपना कुल देवता बनाकर पूज रहें हैं. जो उन्हीं को काटने चला था. अगर वह जिन्दा होकर उठ सकता, तो अपनी कब्र पूजने वाले काफ़िर हिन्दुओं का सिर धड़ से अलग कर देता. आज गाजीमियां की तो हिन्दु धूमधाम से पूजा कर रहा है, जो उन्हें काटने आया था. लेकिन सालार मसूद गाजी को मारकर हिन्दुओं को कटने से बचाने वाले सुहेलदेव पासी का कोई नाम तक नही जानता. तैंतीस करोड़ देवताओं में क्या ऐसा कोई भी काबिल देवता था जिसे ऐसे मूर्ख हिन्दु अपना कुल देवता बना सकते? संसार में इससे बड़ी धार्मिक अनुशासनहीनता और मूर्खता का उदाहरण आपको नही मिलेगा. इस गाजी पूजा को हिन्दु-मुस्लिम एकता का बेजोड़ उदाहरण बताया जाता है.
आज अगर किसी मन्दिर के पास में कोई मजार है, तो हिन्दु मंदिर में कम, मजार में अधिक जायेंगे. इसके पीछे आज के हिन्दुओं के धर्म में सच्चाई, त्याग, वीरता, उत्साह और साहस के स्थान पर, स्वार्थ तथा लालच पैदा करने वाली झूठे चमत्कारों वाली कथायें हैं. हिन्दु बचपन से लेकर बूढे होने तक चमत्कारों की झूठी कहानियाँ सुनता रहता है. इसलिये वह ऐसे ही चमत्कारों को देखने की इच्छा लेकर बाबाओं, कब्रों, मज़ारों या दरगाहों में भटकता रहता है. जहाँ हाथ की सफ़ाई या चेलों द्वारा किये जा रहे नाटक से प्रभावित होकर ठगा जाता है.

चचा खुराफ़ाती हैं सारे खुराफ़ात की जड़.....

आज हम यह जानने की कोशिश करते हैं कि हमारे चचा जान को इस देश में सारी खुफ़ाफ़ात की जड़ क्यों माना जाता है.... सन् 1947 में भारत का बंटवारा धर्म के आधार पर हुआ और मुसलमानों के लिये अलग देश पाकिस्तान बना. इसलिये सरदार पटेल और डा0 भीमराव अम्बेडकर चाहते थे कि आबादी का बँटवारा भी हो अर्थात् सभी मुस्लमान पाकिस्तान जायें और हिन्दु भारत आयें. क्योकि उनका स्पष्ट मानना था कि मुसलिम देश पाकिस्तान में हिन्दु सुरक्षित नही रह सकते. लेकिन हमारे प्यारे चचा जान ने उनकी बात नही मानी. (बाद में डा0 अम्बेडकर और सरदार पटेल की बात सही साबित हुई, जब पाकिस्तान में हिन्दु लूटे, मारे, काटे गये.) पाकिस्तान बनाने वाले मोहम्मद अली जिन्ना भी इसके लिये तैयार थे. इस तरह 1192 में मोहमम्द शहाबुद्दीन गौरी द्वारा पृथ्वीराज चौहान से इस देश की राज सत्ता हथियाये जाने के पूरे 755 वर्षों बाद देश को मुस्लिम आतंकवाद से सदा के लिये छुटकारा पाने का सुनहरा अवसर मिला. लेकिन इस सुनहरे अवसर को हमारे चचा जान श्री जवाहर लाल नेहरु ने अपनी धर्मनिरपेक्षता की गलत नीति के कारण खो दिया. मुसलमानों ने अपने लिये अलग देश पाकिस्तान ले लिया, तो मुसलमानों को यहाँ क्यों रहने दिया. ''हँस कर लिया है पाकिस्तान, लड़कर लेंगे हिन्दुस्तान'' का नारा लगाने वाले मुसलमानों को भारत में रहने देकर, चचा जवाहरलाल नेहरु ने हिन्दु और मुसलमानों के बीच झगड़े का बीज सदैव के लिये बो दिया. भारत में रह गये इन मुसलमानों ने दर्जन-दर्जन भर बच्चे पैदा करके अपनी आबादी इतनी बढ़ायी कि आज भारत दुनिया में सबसे अधिक अबादी वाला देश बन चुका है.
भारत के बँटवारे के बाद शेष भारत के भी इस्लामीकरण की एक निश्चित योजना के तहत कट्टरतम मुसलमान पाकिस्तान न जाकर चचा और उनकी कांग्रेस के सहयोग से भारत में ही रुक गये. कितनी बेतुकी बात है कि मुसलमानों ने भारत का बँटवारा करवाकर अपने लिये पाकिस्तान के रुप में अलग देश बना लिया. फ़िर भी भारत आज दुनिया में मुसलमानों की सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है. जिसका परिणाम आज नही तो कल इस देश को भुगतना ही पड़ेगा. कांग्रेस और इस देश के तमाम नकली धर्मनिरपेक्षतावादी नेताओं को इसका जवाब देना ही पड़ेगा....

काफ़िर हिन्दुओं को अल्लाह की चेतावनी

मुसलमानों के धर्म इस्लाम का मानना है कि अल्लाह ने पैगम्बर मुहम्मद साहब के माध्यम से एक किताब आसमान से भेजी, जिसका नाम कुरान है. कुरान में अल्लाह ने मुसलमानों के लिये आदेश भेजे हैं कि उन्हें क्या करना चाहिये और क्या नही करना चाहिये तथा काफ़िरों के लिये चेतावनी भेजी है कि वह बहुदेववाद अथवा मूर्तिपूजा अर्थात् बुतपरस्ती छोड़ कर मुसलमान बन जायें, नहीं तो उनको भयानक कष्टों और अपमानों को झेलना पड़ेगा. अल्लाह काफ़िरों को यह कष्ट तथा अपमान पहले मुसलमानों के हाथों से दिलवायेगा. कुरान में अल्लाह के आदेश है की यह काफ़िर या मुसलमान बना लियें जायें अथवा मार ड़ाले जायें. लेकिन जो किसी कारण वश जिन्दा बच जायें, तो उनकी जान बचाने के बदले उनसे जजिया कर वसूल किया जाये, उन्हें हर प्रकार से कुचल कर रखा जाये और अपमानित कर कष्ट दिये जायें. कुरान में अल्लाह के यह आदेश आयतों के रुप में समय-समय पर मुहम्मद साहब के माध्यम से उतरते रहे. मुसलमानों की एक धार्मिक पुस्तक कुरान है, जिसमे उपदेश न होकर, अल्लाह के आदेश हैं. जिनकी मुसलमानों द्वारा अवहेलना नही की सकती. इस्लाम का अर्थ ही है ' अल्लाह के आदेशों के सामने समर्पण'

मुठ्ठी भर मुसलमानों ने चटा दी हिन्दुस्तान को धूल

मुठ्ठी भर मुसलमानों ने चटा दी हिन्दुस्तान को धूल इस्लाम के अनुसार हिन्दुओं का सबसे बड़ा दोष यह है कि वह काफ़िर हैं. इसलिये इस्लाम के अनुसार काफ़िरों के लिये सिर्फ़ दो ही रास्ते हैं. या तो वे मुस्लमान बन जायें अथवा जलील करके मार ड़ाले जायें. कुरान मजीद में अल्लाह के इन्हीं आदेशों को मानकर मोहम्मद बिन कासिम ने सन् 712 में सिन्ध के राजा को मारकर हिन्दुस्तान की बरबादी की नीव रखी. जिससे प्रेरित होकर महमूद गजनवी ने 17 बार लाखों हिन्दुओं को मारा काटा. सोमनाथ मंदिर को लूटते और तोड़ते समय 50,0000 हिन्दुओं की हत्या की. (जिसका कारण हिन्दुओं की कायरता और जरुरत से ज्यादा अन्धविश्वास था. वह हिन्दु यही सोचते रहे की भगवान उन्हें धरती पर बचाने आयेगा इसिलिये उन्होंने कातिलों का सामना नही किया और मूली-गाजर की तरह काट ड़ाले गये. यदि उसी समय हिन्दुओं ने उन मुल्लों का डट कर सामना किया होता तो इतिहास कुछ और होता) महमूद गजनवी और उसके सैनिकों ने सोने और हीरे जवाहरातों से ढ़के हुये शिवलिंग को तोड़ दिया.. लूट-पाट मचाई और अपने सैनिकों के साथ मौत का ऐसा तांड़व खेला की सारा सोमनाथ शहर वीरान हो गया. सन् 1122 में मुहम्मद शहाबुद्दीन गोरी ने तराइन के मैदान में पृथ्वीराज चौहान की हत्या करके मौत का तांड़व खेला (इसमें में मुझे पृथ्वीराज चौहान की अदूरदर्शिता ही दिखती है. अगर पृथ्वीराज चौहान ने पहली बार में ही गोरी का सफ़ाया कर दिया होता तो पक्का इतिहास कुछ और होता. तो फ़िर कोई मुल्ला जल्दी से हिन्दुस्तान की तरफ़ नजर उठाने की हिम्मत न करता) मोहम्मद गोरी का साथ देने वाला जयचन्द भी गोरी के ही हाथों मारा गया. मुहम्मद गोरी की अगुआई में मुसलमानों ने कन्नौज से लेकर बनारस तक को लूटा और साथ-साथ हिन्दुओं का कत्लेआम किया. राजा जयचन्द्र की एक पत्नी सुहागदेवी ने मोहम्मद गोरी का साथ दिया था. बदले में गोरी ने सुहाग देवी से वादा किया था कि युद्ध जीतने के बाद वह उसके पुत्र को कन्नौज का राजा बना देगा. जब मोहम्मद गोरी जयचन्द्र का राज्य कन्नौज जीतकर हिन्दुओं को मारता, काटता, लूटता बनारस पहुँचा, तो शहर के फ़ाटक पर अपने पुत्र के साथ सुहाग देवी ने मोहम्म्द गोरी का स्वागत करते हुये अपना परिचय दिया. गोरी ने सुहादेवी को कैद कर लिया और उसके पुत्र को राजा बनाने के स्थान पर मुसलमान बना दिया. मुहम्मद गोरी के बाद कुतुबुद्दीन ऐबक, इल्तुतमिश,बलबन, अलाउद्दीन खिलजी,फ़िरोजतुगलक,सिकन्दर लोधी,तथा बाबर से लेकर औरंगजेब,अहमदशाह अब्दाली आदि बादशाहों ने हिन्दुओं का भयंकर कत्लेआम किया. सन् 1316 में तैमूर लंग कैदी बनाये गये. लगभग एक लाख हिन्दुओं को कुछ ही घंटों में मौत के घाट उतार दिया गया तथा दिल्ली से लेकर हरिद्वार तक अपने घोड़े दौड़ाये, रास्ते में पड़ने वाली हिन्दु बस्तियाँ लूट ली गयी. सन् 1731 में नादिरशाह ने दिल्ली में पाँच घंटे में डेढ़ लाख हिन्दु गाजर, मूली की तरह कटवाकर फ़ेंकवा दिया. सन् 1556 में पानीपत के मैदान में अकबर से जब हेमू (हेमचन्द्र) हार गया तो बैराम खाँ हेमू को पकड़कर अकबर के सामने लाया और अकबर से कहा कि जहाँपनाह अपनी तलवार से इस काफ़िर हिन्दु का सिर धड से अलगकर आप गाजी की उपाधी धारण करें. अकबर ने अपनी तलवार से हेमू का सिर काटकर गाजी की उपाधी धारण की. औरंगजेब ने गोकुल जाट के सिर और धड के टुकडे-टुकडे करके चील, कौवों को खाने के लिये आगरे की कोतवाली के चबूतरे पर फ़ेंकवा दिया. गोकुल जाट के पूरे परिवार को तथा उसके हजारो साथियों को जबरदस्ती मुसलमान बना लिया गया. औरंगजेब ने शिवाजी के पुत्र शम्भा की आखें निकलवा ली और शम्भा जी के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके कुत्तों को खिलवा दिया. औररंगजेब ने हिन्दुओं को बड़ी क्रूरता से कुचल दिया. हिन्दुओं की रक्षा करने वाले गुरु तेग बहादुर सिंह की हत्या करवा दी. गुरु गोविन्द सिंह के दो पुत्रों की हत्या करवा दी और दो को जिन्दा ही चुनवा दिया. बाद में गुरु गोविन्द सिंह की हत्या भी एक मुसलमान पठान ने कर दी. गुरु गोविन्द सिंह के शिष्य बंदा बैरागी को बादशाह फ़रुखशियार ने गिरफ़्तार करवा कर मुसलमान बन जाने को कहा. जब बंदा बैरागी ने मुसलमान बनना स्वीकार नही किया तो बंदा बैरागी और उनके सैकडों सैनिकों का बड़ी बेरहमी से कत्ल कर दिया गया. मतिराम को आरे से चिरवाया गया, कुछ को खोलते तेल में ड़ालकर मारा गया तथा कई रुई के बंड़ल में लपेटकर जला दिया गया. सिख गुरुओं पर भयंकर जुल्म किये गये. वास्तव में यह सभी बादशाह केवल कुरान मजीद के आदेशों का पालन कर रहे थे.. और यह कोई मुल्लों शौर्य की गाथा नही हिन्दुओं की बेवकूफ़ी, कायरता, अंधविश्वास और अत्यधिक दयालुता वाले स्वभाव की गाथा है. हिन्दुओं के साथ इतनी त्रास्दी होने के बाद भी हिन्दुओं ने अपने इतिहास से कोई सबक नही लिया. अगर आज भी हिन्दु नही समहले और ये ऊँच-नीच जैसे ढ़कोसलों को मानते हुये अपने धर्म के उदासीन बने रहेंगे तो वह समय दूर नही जब हिन्दुस्तान फ़िर से मुल्लास्थान बन जाये... इसलिये मेरा हिन्दुओं से आग्रह है की अब तो जागो और हिन्दु एकता को बढ़ावा दो.गर्व से बो ले हम एक है. किसी चमत्कार की उम्मीद न करें की भगवान आपको बचाने आयेगा. जान लो भगवान भी उसी का साथ देता है जो खुद अत्याचार का सामना करने के लिये आगे आता है. आत्म रक्षा ही सबसे बड़ा धर्म है. इसी उद्देश्य से निकाल दो हिन्दु समाज से शूद्र या दलित जैसे शब्द. भूल जाओ अव्यवहारिक अहिंसा को. मिटा दो अतिसहिष्णुता को और गर्व से बोलों हम हिन्दु हैं.. यह गाल पिटे वह गाल बढ़ाओ, यह तो आर्यों की नीति नही अन्यायी से प्रेम अहिंसा, यह तो गीता की नीति नही हे राम बचाओ जो कहता है, वह कायर है, खुद अपना हत्यारा है जो करे वीरता अति साहस वही राम का प्यारा है.

कब्र..मजार.. या दरगाह पूजने से ही होगी धार्मिक एकता....

कब्र..मजार.. या दरगाह पूजने से ही होगी धार्मिक एकता.... मनहूस सेकुलर नेता मज़ारो (कब्रों) को खूब भुनाते हैं. मुसलमानों की कब्र जिसे मजार अथवा दरगाह कहते हैं, मे मुसलमानों से अधिक हिन्दु जाते हैं जिसके लिये मनहूस सेकुलर नेता प्रचार करते हैं कि यह हिन्दु मुस्लिम एकता का महान उदाहरण है. इन मजारो को हिन्दु मुस्लिम एकता का प्रतीक कहकर हिन्दुओं को उनमें चादर चढ़ाते दिखाया जाता है. लेकिन यह नेता हिन्दु मंदिरों में मुसलमानों से पूजा करवाकर हिन्दु-मुस्लिम एकता का उदाहरण क्यों नही पेश कराते. क्या यह ऐसा कर सकते हैं? उत्तर केवल एक है कि हरगिज नही. फ़िर यह एकतरफ़ा हिन्दु-मुस्लिम एकता की बात क्यों की जाती है? श्रीजवाहर लाल नेहरु, महात्मा गांधी, इन्दिरा गांधी, डा. राजेन्द्र प्रसाद आदि की समाधि पर उनकी पुण्यतिथि को गीता, कुरान आदि सभी धर्मो की पुस्तकों का पाठ होता है. लेकिन जाकिर हुसैन, मौलाना आजाद, फ़खरुद्दीन अली अहमद आदि मुसलिम नेताओं की मजार पर केवल कुरान का पाठ होता है. वहाँ यह नेता गीता का पाठ क्यों नही करवाते? क्या धर्मनिरपेक्षता और दूसरे धर्मो की इज्जत करने का ठेका केवल हिन्दुओं ने ही ले रखा है? अजमेर सहित भारत की अन्य दरगाहों व मज़ारों में हिन्दु कुत्ते की तरह दौड़े चले जाते हैं. अपने बच्चों को मस्जिदों में ले जाकर फ़ूंक मरवाते हैं. ऐसे हिन्दु दरगाहों मज़ारों और पीर फ़कीरों और बाबाओं के नाम से थरथर काँपते हैं. हिन्दु जिस धर्म को मानते हैं, वह अपरिभाषित है. इसलिये संकट के समय ईश्वर हिन्दुओं का साथ नही देता, इतिहास गवाह है. हिन्दुओं की यह मज़ार परस्ती (मज़ार पूजना) हिन्दु-मुस्लिम एकता का नमूना न होकर, उनकी अज्ञानता और मूर्खता है. हिन्दु धर्माचार्यों को उन्हें ऐसा करने से रोकना चाहिये. खबरदार ! यह मज़ार और बाबा पूजा बन्द करो. उस परमपिता परमेश्वर की पूजा करो, जो सबको देता है. जिसकी मजार मे तुम जाते हो अथवा अवतार के नाम पर जिस बाबा की तुम पूजा करते हो, उसे परमेश्वर ने ही पैदा किया और परमेश्वर ने ही जब चाहा उसे मार दिया. उसको अपने जिन्दा रहते जो कुछ भी मिला, परमेश्वर से ही मिला. अनन्त सूर्यों, अनन्त अनन्त ब्रह्माण्ड़ को उत्पन्न करने वाला, उन्हें प्रकृति के नियम में बाँधकर निश्चित गति देने वाला तथा उनका विनाश करने वाला, प्रकाश की गति से अनन्त गुणा गति दे सकने वाला वही परमपिता परमेश्वर ही है. उसकी इस अनन्त महान रचना के सामने, हम क्या? हमारी पृथ्वी ही लगभग शून्य के समान है. इसलिये जो भी मांगना है उस परमपिता परमेश्वर से ही मांगो. देना अथवा न देना तुम्हारे कर्म और उसकी इच्छा पर निर्भर है. गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भूत प्रेत, मूर्दा (खुला या दफ़नाया हुआ अर्थात् कब्र अथवा समाधि) को सकामभाव से पूजने वाले स्वयं मरने के बाद भूत-प्रेत ही बनते हैं. यान्ति देवव्रता देवान् पितृन्यान्ति पितृव्रताः भूतानि यान्ति भूतेज्या यान्ति मद्याजिनोऽपिमाम्.

हिन्दुओं का मूर्खतापूर्ण पलायनवाद

हिन्दुओं का मूर्खतापूर्ण पलायनवाद आजकल कुछ पलायनवादी हिन्दु कहते हैं कि हिंसावादी लोग आपस में ही लड़कर मर जायेंगे. कुछ कहते हैं कि उनसे अमेरिका निपट लेगा और कुछ कहते है कि लागे सम्बद बीसा, न रहे ईसा न मूसा. इसी तरह गुजरात में सोमनाथ मंदिर में पुजारियों ने अंधविश्वास फ़ैला रखा था कि मंदिर में मुस्लमान सैनिकों के पैर रखते ही, भगवान शिव क्रोध से अपना तीसरा नेत्र खोल देंगे और सारे मुस्लमान जलकर भस्म हो जायेंगे. लेकिन जब सोमनाथ मंदिर पर वास्तव में महमूद गजनवी का हमला हुआ, तो मंदिर की सुरक्षा के लिये लगाये गये हजारों सैनिक, इसी अंधविश्वास के कारण मंदिर की रक्षा के लिये लड़ने के स्थान पर अपने-अपने हथियार मंदिर में ही रखकर दीवारों और छतों पर यह देखने के लिये चढ़ गये कि भगवान शिव जब क्रोध से अपना तीसरा नेत्र खोलेंगे, तब मुसलमान सैनिक कैसे तड़प-तड़पकर मरेंगे. इतिहास गवाह है कि विरोध न होने के कारण महमूद गजनवी के आतंकवादी सैनिक तो सुरक्षित रहे, किन्तु अन्धविश्वास के नाम पर अकर्मण्यता फ़ैलाने वाले सैकड़ो पुजारियों व तमाशा देखने वाले हजारो हिन्दु सैनिकों को मार-काटकर, संसार के सबसे वैभवशाली मंदिर सोमनाथ को महमूद गजनवी ने मिट्टी में मिला दिया और लगभग 500000 हिन्दुओं को मार-काटकर सारा शहर सोमनाथ वीरान कर दिया. भाग्य और भगवान के सहारे बैठे रहने के कारण हिन्दु सदैव इसी तरह खतरों में पड़ते रहे.