Sunday, July 28, 2013

''गुजरात दंगो का पूरा सच'' गोधरा और कुछ सवाल

एक निर्दलीय मुस्लिम सांसद अदीब ने एक चिट्ठी अमेरिका के राष्ट्रपति को मोदी को वीजा ना दिये जाने को लेकर लिखी। उस पर एनडीटीवी पर एक बह्स हो रही थी जिसमे कांग्रेस के संजय निरूपम अपने ही अंदाज मे बस कुछ भी बोले जा रहे थे। एक बार उन्होंने कहा कि "गुजरात मे जो नरसंहार हुआ" मुझको नही लगता संजय निरूपम जैसा व्यक्ति नरसंहार का अर्थ नही जानता है।
नरसंहार तो 1984 में हुआ था और उस समय भी सरकार कुछ नहीं कर पाई थी। और तो और राजीव गाँधी ने कहा था कि जब बड़ा पेड़ गिरता है तो आवाज होती है| 1984 में कुल 8000 लोगो की मौत हुई जिसमे अकेले दिल्ली मे 3323 के आसपास लोग मारे गए। एक और बात इस नरसंहार मे केवल एक समुदाय के लोगों का कत्ल किया गया। आज जहां देखो गुजरात के दंगो के बारे में ही सुनने और देखने को मिलता है। रोज गुजरात की सरकार को कटघरे में खड़ा किया जाता है। हर कोई सेक्युलर के नाम पर एक ही स्वर में गुजरात दंगो की भर्त्सना करते हैं परंतु जैसे ही 1984 की बात करो उनका कहना होता है की दोनों मे कोई समानता नहीं हो सकती।
यह तर्क सत्य के निकट प्रतीत होता है |
कारण: दोनों के कारण देखें जाए तो पता चलेगा की 1984 मे नरसंहार एक पार्टी के बड़े नेता की हत्या के बाद हुआ था, जबकि गुजरात मे एक ट्रेन मे 78 लोगो को जिंदा जला देने के बाद।
क्षति: 1984 में केवल एक समुदाय विशेष के 8000 लोग ही मारे गये जबकि गुजरात मे 790 मुस्लिम और 332 हिन्दू समुदाय के लोग थे। यह अलग बात है कि मरनेवालों मे हिन्दू म्रतको के बारे मे कोई बात नहीं करता।
27 फरवरी 2002 'आधुनिक' भारत के इतिहास का एक और काला दिन इसी दिन इस 'स्वतंत्र' और "धर्मनिरपेक्ष" देश में सुबह 7:43 बजे गुजरात के गोधरा स्टेशन पर इसी देश के 58 नागरिकों (23 पुरुषों, 15 महिलाओं और 20 बच्चों) को साबरमती एक्सप्रेस के कोच स-6 में ज़िंदा जला दिया गया |
कुछ प्रश्न जो बार - बार मेरे मन में गुजरात दंगो को लेकर आते है ?
1.   जब ट्रेन 27 फरवरी को जलाई गई तो गुजरात में पहली हिंसा दो दिन के बाद यानी 29 फरवरी को क्यों हुई? 
2.   जमायत-ए-इस्लामी हिन्द के तत्कालीन प्रमुख ने इसके लिए कारसेवकों को ही जिम्मेदार ठहरा दिया। शबाना आजमी ने भी कहा की कारसेवकों को उनके किए की सजा मिली है। तीस्ता जावेद सेतलवाड़ और मल्लिका साराभाई और शबनम हाशमी ने एक संयुक्त प्रेस कांफेरेस के कहा कि हमें ये नही भूलना चाहिए कि वे कारसेवक किसी नेक मकसद के नही गए थे बल्कि विवादित जगह पर मन्दिर बनाने गए थे। ऐसा भड़काने वाले बयान क्यों दिए तथा इन पर कोई कार्यवाही क्यों नहीं की गई? 
3.  गुजरात के पूर्व मुख्यमंत्री और बड़े कांग्रेसी नेता अमरसिंह चौधरी का टीवी पर आकर दिया गया बयान क्यों नही दिखाया जाता? 
4.  1 मार्च 2002 को मोदी ने अपने पड़ोसी राज्यों महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, राजस्थान और पंजाब से सुरक्षाकर्मियों की मांग की। क्या कभी किसी ने भी इन माननीय मुख्यमंत्रियों से एक बार भी पूछा कि अपने सुरक्षाकर्मी क्यों नहीं भेजे गुजरात में।
5.  लालूप्रसाद यादव रेलमंत्री बने तो उन्होंने जस्टिस उमेशचन्द्र बनर्जी की अध्यक्षता में आयोग बनाया। आयोग ने कहा की ट्रेन अंदर से जलाई गई थी मतलब वे कहना चाह रहे थे कि सभी कारसेवको को सामूहिक आत्मदाह करने की इच्छा हो गई इसलिए उन्होंने खुद ही ट्रेन में आग लगा ली और किसी ने भी बाहर निकलने की कोशिश नही की। फिर अक्टूबर 2006 के गुजरात हाईकोर्ट की चार जजों की बेंच ने जिसमे सभी जज एक राय पर सहमत थे उन्होंने लालू के बनर्जी आयोग की रिपोर्ट को ख़ारिज कर दिया और टिप्पणी करते हुए कहा कि कोई रिटायर जज किसी नेता के हाथ की कठपुतली न बने। गुजरात हाईकोर्ट ने बनर्जी रिपोर्ट को रद्दी, बकवास कहा। आयोग क्यो बनाया गया? इसके दुरूपयोग के लिए लालू प्रसाद यादव पर कोई केस क्यों नहीं चला? 
6.   गोधरा ट्रेन हादसे में जख्मी हुए नीलकंठ तुलसीदास भाटिया नामक एक शख्स ने बनर्जी आयोग की झूठे रिपोर्ट को गुजरात हाईकोर्ट में चैलेंज किया था। गुजरात हाई कोर्ट ने विश्व के जानेमाने फायर विशेषज्ञ और फोरेंसिक एक्पर्ट का एक पैनल बनाया गया और जस्टिस उमेश चन्द्र बनर्जी को इस पैनल के सामने पेश होने का समन दिया। तीन समनों के बाद पेश हुए बनर्जी साहब ने क्या उत्तर दिया इस पर सब मौन है। 
7. साबरमती ट्रेन हादसे में मौत की सजा प्राप्त अब्दुल रजाक कुरकुर के अमन गेस्टहाउस पर ही कारसेवकों को जिन्दा जलाने की योजना बनी थी। इसके गेस्टहाउस से कई पीपे पेट्रोल बरामद हुए थे। पेट्रोल पम्प के कर्मचारियो ने भी कई मुसलमानों को महीने से पीपे में पेट्रोल खरीदने की बात कही थी और उन्हें पहचान परेड में पहचाना भी था। पेट्रोल को सिगनल फालिया के पास और अमन गेस्टहाउस में जमा किया जाता था,  परंतु यह बात मीडिया कभी क्यों नहीं दिखाती।
8.  गोधरा की मुख्य मस्जिद का मौलाना मौलवी हाजी उमर ही इस कांड का मुख्य आरोपी पाया गया और उसे अदालत ने फांसी की सजा दी जिसे बाद में आजीवन कारावास में तब्दील किया गया। इस पर भी कोई नेता नही बोलता।
इन सवालों के जबाब मुझे नही मिले और न ही इन सवालों पर कोई नेता या मीडिया कभी कोई बहस करवाता है।
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Monday, July 22, 2013

ये नेता टोपी पहन नही रहे..पहना रहे हैं.....



सबसे ज्यादा सम्पन्न मुस्लिम हैं गुजरात में हैं......

1.गुजरात में मुस्लिमों का साक्षरता प्रतिशत 73% जबकि बाकी देश में 59%
2.ग्रामीण गुजरात में मुस्लिम लड़कियों की साक्षरता दर 57%, बाकी देश में 43%
3.गुजरात में प्राथमिक पाठशाला पास किये हुए मुस्लिम 74%,जबकि देश में 60%
4.गुजरात में हायर सेकण्डरी पास किये मुस्लिमों का प्रतिशत 45%, देश में 40%शिक्षा सम्बन्धी सारे के सारे आँकड़े मुस्लिम हितों की कथित पैरवी करने वाले, मुस्लिम हितैषी (?) पश्चिम बंगाल,उत्तर प्रदेश और बिहार से कोसों आगे हैं।
5.गुजरात के जिन गाँवों में मुस्लिम आबादी 2000 से अधिक है वहाँ प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र की उपलब्धता है 89%,जबकि बाकी देश में 70%
6.जिन गाँवों में मुस्लिम आबादी 1000 से 2000 के बीच है. वहाँ स्वास्थ्य केन्द्र का प्रतिशत 66%है, जबकि देश का औसत है 43%
7. जिन गाँवों में मुस्लिम आबादी 1000 से कम है वहाँ 53%,राष्ट्रीय औसत है सिर्फ़ 20% शायद राहुल गाँधी आपको बतायेंगे, कि उनके पुरखों ने बीते 60 सालों में, भारत के ग्रामीण क्षेत्र में स्वास्थ्य सुविधाएं बढ़ाने के लिये कितने महान कार्य किये हैं।
8. गुजरात के ग्रामीण क्षेत्रों में मुस्लिमों की प्रति व्यक्ति आय 668 रुपये हैं, पश्चिम बंगाल में 501, आंध्र प्रदेश में 610, उत्तरप्रदेश में 509, मध्यप्रदेश में 475 और मीडिया के दुलारे जोकर यानी लालू द्वारा बर्बाद किये गये बिहार में 400 रुपये से भी कम। गुजरात के शहरों में भी मुस्लिमों की बढ़ती आर्थिक सम्पन्नता इसी से प्रदर्शित होती है कि गुजराती मुस्लिमों के बैंक अकाउंट में औसत 32,932 रुपये की राशि है, जबकि यही औसत पश्चिम बंगाल में 13824/-तथा आसाम में 26,319/- है।
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मूर्ख मुसलमानों को अब तो समझ ही आ जाना चाहिये कि नीच सुअर सेकुलर नेता तुम लोगों को सिर्फ़ वोट की खातिर इस्तेमाल करते हैं. आरक्षण की बोटी फ़ेंक कर अपनी कुर्सी पक्की करते हैं. वोटों की खातिर तुम्हें आरक्षण का झुनझुना तो थमाते हैं लेकिन साक्षर करने की दिशा में कोई कदम नही उठाते. यही कारण है कि आज तक तुम लोग टायर पंचर बनाने का काम, कारीगरी का काम, बढ़ई जैसे काम करते ज्यादा दिखते हो. ये सेकुलर नेता तुम्हारे बच्चों को शिक्षित करने की दिशा में कोई ठोस कदम नही उठाते तभी तो तुम्हारे बच्चे 5 साल के हुये नही कि छेनी-हथोड़ी लिये घूमते हैं. इन्हें पता है अगर तुम लोग शिक्षित हो गये तो तुम लोग कभी इन्हें वोट नही दोगे. समझ लो ये नेता तुम्हारी टोपी नही पहन रहे बल्कि तुम्हें टोपी पहना रहे हैं.......